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लेखनी प्रतियोगिता -19-Dec-2022


हंसती खिलखिलाती करती अठखेलियाँ
बढ़ती चली गईं हिमालय की बेटियां।

ये नदियां हैं या नारियां हैं
या बच्चियां हैं किसी उपवन की
इनका जीवन भी उद्धरण है
इनके विशुद्ध नारीपन की।

जब होती हैं ये पर्वतों में
लहराती हैं अल्हड़पन में
जैसे कोई छोटी बच्ची
खेलती पिता के आंगन में ।

वो शीतलता उच्छ्रंखलता
वो बालसुलभ बचपन जैसा
सुंदर शुद्ध निर्मल पानी
छोटे बच्चों के मन जैसा।

फिर आती हैं मैदानों में
गम्भीर शान्त उपयोगी हो
जैसे कोई नववधू चली जो
शोख हो सहयोगी भी हो।

फिर नदियों के देवता सागर से
 वो एक दिवस मिल जाती है
करके जीवन को अर्पित फिर
मुक्ति धाम को जाती है।

कितना मिलता जुलता देखो
नदियों का नारी से जीवन
चलते रहना पालन करना
सुंदर सन्देश भरा जीवन।

वो स्वच्छ हो या चाहे मलीन
हर रूप में ही सम्मानित है
वो नदी हो चाहे नारी हो
प्रकृति से शुद्ध विधानित है ।।





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7 Comments

बहुत ही खूबसूरत रचना, नारी और नदी की तुलना बेहतरीन है

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Gunjan Kamal

21-Dec-2022 09:22 PM

शानदार

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Sachin dev

20-Dec-2022 04:17 PM

Superb 👍

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